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शनिवार, 15 अगस्त 2015

संत शिरोमणी श्री त्यागी जी महराज

बहुत कम ही लोग जानते है कि अपना जिला शाहजहाँपुर आध्यात्मिक दृष्टी से भी अत्यंत समृद्ध है।चर्चा पौराणिक काल से ही मिलती है जब श्रृंगी ऋषि को श्राप मिला और उनकी नाक पर सींग उग आया और पश्चाताप करने हेतू जब वे गंगा किनारे चलते चलते अपने जिले की सीमा में आये तो घटिया घाट पर वो सींग घट गया और ढाई घाट पर ढह गया।यद्यपि यह सांकेतिक कथा हो सकती है वास्तव में उनका अहंकार बढ गया होगा और गंगा किनारे चलते चलते तपस्वियो के साक्षात्कार के बाद अह खत्म हुआ होगा।जो भी हो लेकिन इस बात के स्पस्ट प्रमाण है कि कलांन,मिर्जापुर के।इलाके में एक समृद्ध संत परम्परा रही है।देत्य गुरु शुक्राचार्य की तपोस्थल पटना देवकली हो या जमदग्नि,परशुराम का स्थान जलालबाद सबके सब रामगंगा और गंगा जी के किनारे ही बसे है।इन दोनों नदियो के पावन किनारे पर ही आधुनिक समय में आध्यात्मिकता की महान विभूति परमसंत श्री त्यागी जी महराज की साधनास्थली रही है।आपका जन्म जलालाबाद तहसील की ग्राम पंचयत टॉपर में हुआ।आपने सुप्रसिद्ध क्विन्स कालेज,बनारस से एम्.एड तक शिक्षा ग्रहण की।शीघ्र ही आपने मानवता के कल्याण के लिए आध्यात्मिकता का मार्ग चुन लिया।इक्कीस वर्षो तक आपने तपस्या कर ज्ञान और शक्तिओ का अर्जन किया।आपके चमत्कारो की घटनाये सुनाते बहुत से लोग मिल जाते है। कहा तो यह भी जाता है कि आप अपने शरीर पर गरूत्वाकर्षण के प्रभाव को शून्य करने की विद्या जानते थे जिसकी सहायता से आप हवा में उड लेते थे।डॉ आफताब अख्तर ने आपकी आध्यात्मिक शक्तिओ और जीवन पर एक वृतचित्र का निर्माण भी किया है।विभिनन जन आंदोलनों का नेतृत्व कर आपने ढाईघाट और कोल्हाघट के पुलो का निर्माण कराया।वर्ष 2002 में आप ने पार्थिव देह का परित्याग कर दिया।
आपको टॉपर स्वामी,कारव बाबा,त्यागी जी महराज,दूधा बाबा,कालेकंठ वाले बाबा आदि नामो से भी पुकारा जाता है।
'शाहजहाँपुर-सिटीजन ग्रुप की ओर से आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम हैं।'
(Dr.Vikas Khurana/Dr.Prashant Agnihotri)

गुलाम गौस खान

(शाहजहाँपुर के थे रानी लक्ष्मीबाई के कमांडर- इन-चीफ)
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सर ह्यूरोज,जिन्होंने 17जून'1858 को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के साथ निर्णायक लडाई लडी थी ने अपनी किताब में लिखा कि 'विद्रोहियो में एकमात्र मर्द,लक्ष्मी बाई ही थी और हो भी क्यों न जिस समय सारे राजपूताना,सिंध,पंजाब के बडे बडे राजा अंग्रेजो का साथ दे रहे थे एकमात्र रानी ही जन.बख्त खान के साथ रणनीतिक सहयोग कर रही थी।यद्यपि यह विद्रोह कुचला गया लेकिन हिंदुस्तान की तारीख साक्षी है कि न केवल कंपनी का जहाज़ डूब गया बल्कि मुल्क के जर्रे जर्रे से आज़ादी की नयी लहर उठने लगी।
बहुत कम लोग जानते है कि लक्ष्मीबाई के मुख्य कमांडर गुलाम गौस खा अपने शहर के थे।जब झांसी के किले पर अंग्रेजो अधिकार करने पहुँचे तब गुलाम गौस खान के नेतृत्व में रानी के तोपचिओ ने ब्रिटिश खेमे में खलबली मचा दी थी।और गुलाम गौस ही क्यों दोस्त खा,मोती बाई,बख्श खान सभी रानी के उम्दा सिपहसालार थे।यद्यपि झांसी के किले की लड़ाई में गौस खान और मोतीबाई वीरगति को प्राप्त हुए किन्तु उनके प्रयत्नो का ही परिणाम था रानी सकुशल ग्वालियर पहुँच गयी।
बाते तो बहुत है लेकिन फिलहाल इतना ही आजकल जो राष्ट्र् वाद की नयी हवा चली है उसमे उस खून की कीमत कुछ नहीं जो मुसलमानो ने मुल्क के लिए बहा दिया।

आजादी की कहानी

*आजादी की कहानी*
(डॉ विकास खुराना,अध्यक्ष-इतिहास विभाग,एस.एस.कालेज,शाहजहाँपुर)
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1857 के बाद से ही अंग्रेजी सरकार की यह सोच बन गयी थी कि मुसलमान अपनी खोयी सत्ता दुबारा प्राप्त करना चाहते है।फलस्वरूप् मुसलमानो का दमन शुरू हुआ दूसरी ओर हिन्दुओ ने नयी शिक्षा नीति का भरपूर फायदा उठाया और अगले बीस वर्षो में कांग्रेस जैसा अखिल भारतीय संघटन खडा हो गया।ठीक इसी समय सरकार ने मुसलमानो का उपयोग रास्ट्रवादी आंदोलन के खिलाफ करने की सोची ओर लार्ड मिन्टो की गुप्त योजना से लीग अस्तित्व में आई।मुसलमानो को भरात्मक प्रतिनिधित्व दिया गया।1937 में देश में पहले आम चुनाव हुए इस चुनाव में लीग को केवल दो ही सीटे मिल सकी।मुहमद अली जिन्नाह ने नेहरू को पत्र लिखा कि आज साबित हो गया है देश में दो ही ताकते है अंग्रेज और कांग्रेस तो आइये हम मिलकर सरकार बनाये।नेहरू ने भारी भूल करते हुए लीग के कांग्रेस में विलय की शर्त रख दी।जिन्नाह ने इसे अपने खत्म होने का संकेत माना और कांग्रेस पर आरोप लगाने लगा कि यह मुसलमानो की विरोधी संस्था है और इस्लाम खतरे में है।लिहाजा मुसलमान लीग के नीचे आ गए,पृथक पाकिस्तान की आवाज उठी और उसके लिए अमानवीय उपक्रम किये गए।16 सितम्बर को जिनाह ने प्रत्यक्ष कार्यवाही का एलान किया गया।इस दिन कलकत्ता की मुस्लिम सरकार ने हिन्दुओ पर हमले किये कोई 7000 लोग इस दिन मारे गए।शीघ्र ही पूरा देश साम्प्रदयिक दंगो में फस गया। लडाई पद की ही थी नेहरू और जिन्नाह की खामियाजा देश भुगत रहा था।बम्बई में जिन्नाह के डॉक्टर ने नेहरू को पत्र लिखा कि जिन्नाह को केंसर है इसे प्रधानमंत्री बन जाने दो,यह ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहेगा फिर सारा देश आपका ही है।नेहरू नहीं माने।इन परिस्थितिओ में भारत का विभाजन हो गया।इतिहास यह बताता है कि कैसे नेताओ का अहम् लोगो को भीषण स्थितियो में डाल देता है,हम लोग कुछ समझ सके तब तो?
बहरहाल पंजाबी समुदाय जिन्होंने सबसे ज्यादा नुकसान उठाया उनकी ओर से आजादी मुबारक!