(शाहजहाँपुर के थे रानी लक्ष्मीबाई के कमांडर- इन-चीफ)
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सर ह्यूरोज,जिन्होंने 17जून'1858 को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के साथ निर्णायक लडाई लडी थी ने अपनी किताब में लिखा कि 'विद्रोहियो में एकमात्र मर्द,लक्ष्मी बाई ही थी और हो भी क्यों न जिस समय सारे राजपूताना,सिंध,पंजाब के बडे बडे राजा अंग्रेजो का साथ दे रहे थे एकमात्र रानी ही जन.बख्त खान के साथ रणनीतिक सहयोग कर रही थी।यद्यपि यह विद्रोह कुचला गया लेकिन हिंदुस्तान की तारीख साक्षी है कि न केवल कंपनी का जहाज़ डूब गया बल्कि मुल्क के जर्रे जर्रे से आज़ादी की नयी लहर उठने लगी।
बहुत कम लोग जानते है कि लक्ष्मीबाई के मुख्य कमांडर गुलाम गौस खा अपने शहर के थे।जब झांसी के किले पर अंग्रेजो अधिकार करने पहुँचे तब गुलाम गौस खान के नेतृत्व में रानी के तोपचिओ ने ब्रिटिश खेमे में खलबली मचा दी थी।और गुलाम गौस ही क्यों दोस्त खा,मोती बाई,बख्श खान सभी रानी के उम्दा सिपहसालार थे।यद्यपि झांसी के किले की लड़ाई में गौस खान और मोतीबाई वीरगति को प्राप्त हुए किन्तु उनके प्रयत्नो का ही परिणाम था रानी सकुशल ग्वालियर पहुँच गयी।
बाते तो बहुत है लेकिन फिलहाल इतना ही आजकल जो राष्ट्र् वाद की नयी हवा चली है उसमे उस खून की कीमत कुछ नहीं जो मुसलमानो ने मुल्क के लिए बहा दिया।
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सर ह्यूरोज,जिन्होंने 17जून'1858 को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के साथ निर्णायक लडाई लडी थी ने अपनी किताब में लिखा कि 'विद्रोहियो में एकमात्र मर्द,लक्ष्मी बाई ही थी और हो भी क्यों न जिस समय सारे राजपूताना,सिंध,पंजाब के बडे बडे राजा अंग्रेजो का साथ दे रहे थे एकमात्र रानी ही जन.बख्त खान के साथ रणनीतिक सहयोग कर रही थी।यद्यपि यह विद्रोह कुचला गया लेकिन हिंदुस्तान की तारीख साक्षी है कि न केवल कंपनी का जहाज़ डूब गया बल्कि मुल्क के जर्रे जर्रे से आज़ादी की नयी लहर उठने लगी।
बहुत कम लोग जानते है कि लक्ष्मीबाई के मुख्य कमांडर गुलाम गौस खा अपने शहर के थे।जब झांसी के किले पर अंग्रेजो अधिकार करने पहुँचे तब गुलाम गौस खान के नेतृत्व में रानी के तोपचिओ ने ब्रिटिश खेमे में खलबली मचा दी थी।और गुलाम गौस ही क्यों दोस्त खा,मोती बाई,बख्श खान सभी रानी के उम्दा सिपहसालार थे।यद्यपि झांसी के किले की लड़ाई में गौस खान और मोतीबाई वीरगति को प्राप्त हुए किन्तु उनके प्रयत्नो का ही परिणाम था रानी सकुशल ग्वालियर पहुँच गयी।
बाते तो बहुत है लेकिन फिलहाल इतना ही आजकल जो राष्ट्र् वाद की नयी हवा चली है उसमे उस खून की कीमत कुछ नहीं जो मुसलमानो ने मुल्क के लिए बहा दिया।
ऐसा नहीं है| यह देश जितना हिन्दुओ का है उतना ही मुसलमानों क भी है| इसकी मिटटी में दोनों कौम का खून मिला है| हाँ, आजकल मजहब मुल्क से बड़ा हो गया है|
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