*शाहजहाँपुरनामा:भाग,1*
(चिनौरगढ़ी की लड़ाई)
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अभी हाल ही में खैबर आर्गेनाईजेशन के तत्वाधान में पूरी दुनिया के अफ़ग़ानों की तारीख को क्रमबद्ध करने के प्रयास शुरू हुए है। इसमें शाहजहाँपुर की तारीख भी शामिल है।'अख़बार-ए-मुहब्बत' 'अनवार उल बहर जैसी तारीखी किताबो के हवाले से शहर में पठानो की आमद और शहर के बसने के बारे में जानकारी मिलती है।
नवाब दिलेर खान और नवाब बहादुर खान के वालिद दरयाखान,मुग़ल बादशाह जहांगीर की फ़ौज में उच्च पद पर पहुचे थे।शाहजहाँ के समय आपको कालपी और कन्नौज का जागीरदार बनाया गया।
सन् 1647 में जब कांट के पास उपद्रवी राजपूतो ने शाही खजाने को लूटा तो फरमान जारी कर दिलेरखान को क्षेत्र में भेजा गया ताकि उपद्रवियों को सजा दी जा सके।
राजपूतो और पठानों में चिनौर गढ़ी में बड़ी लड़ाई हुई जिसमे 13000 राजपूत और 1100 पठान शहीद रहे।निश्चित ही राजपूतो की संख्या इससे कम ही रही होगी जो मुस्लिम स्रोत बताते है।पठानों की जीत ने शहर की अधारशीला रखी।मुगल बाद्शाह द्वारा दिलेर खान को चौदह गाँव उपहारस्वरूप दिए गए और एक किला बनाने की अनुमति।नवाब दिलेर खान ने तदुपरांत दिलवरगंज और बहादुर गंज बसाये।पठानों की आमद बढ़ने से शहर में उनके कबीलो के अनुसार 52 मोहल्ले बसे।दिलावर खान ने अपने भाई नवाब बहादुर खान को इस क्षेत्र का प्रशासन सौप दिया।नवाब बहादुर खान भी यहाँ कम ही रुक पाये।जल्दी ही उत्तरपश्चिम में हुई मुग़ल और बल्ख लड़ाई में वे मारे गये।उनके पुत्रो की संख्या बीस थी।सन् 1857 तक नवाब का टाइटल उनके परिवार के पास था जो बाद में छिन गया।आज भी शहर के अनेक परिवार नवाब बहादुरखान की पीढ़ियों में से है।
क्रमश्
डॉ विकास खुराना-अध्यक्ष,इतिहास विभाग,एस एस (पी.जी) कालेज,शाहजहाँपुर (उ प्र)
(चिनौरगढ़ी की लड़ाई)
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अभी हाल ही में खैबर आर्गेनाईजेशन के तत्वाधान में पूरी दुनिया के अफ़ग़ानों की तारीख को क्रमबद्ध करने के प्रयास शुरू हुए है। इसमें शाहजहाँपुर की तारीख भी शामिल है।'अख़बार-ए-मुहब्बत' 'अनवार उल बहर जैसी तारीखी किताबो के हवाले से शहर में पठानो की आमद और शहर के बसने के बारे में जानकारी मिलती है।
नवाब दिलेर खान और नवाब बहादुर खान के वालिद दरयाखान,मुग़ल बादशाह जहांगीर की फ़ौज में उच्च पद पर पहुचे थे।शाहजहाँ के समय आपको कालपी और कन्नौज का जागीरदार बनाया गया।
सन् 1647 में जब कांट के पास उपद्रवी राजपूतो ने शाही खजाने को लूटा तो फरमान जारी कर दिलेरखान को क्षेत्र में भेजा गया ताकि उपद्रवियों को सजा दी जा सके।
राजपूतो और पठानों में चिनौर गढ़ी में बड़ी लड़ाई हुई जिसमे 13000 राजपूत और 1100 पठान शहीद रहे।निश्चित ही राजपूतो की संख्या इससे कम ही रही होगी जो मुस्लिम स्रोत बताते है।पठानों की जीत ने शहर की अधारशीला रखी।मुगल बाद्शाह द्वारा दिलेर खान को चौदह गाँव उपहारस्वरूप दिए गए और एक किला बनाने की अनुमति।नवाब दिलेर खान ने तदुपरांत दिलवरगंज और बहादुर गंज बसाये।पठानों की आमद बढ़ने से शहर में उनके कबीलो के अनुसार 52 मोहल्ले बसे।दिलावर खान ने अपने भाई नवाब बहादुर खान को इस क्षेत्र का प्रशासन सौप दिया।नवाब बहादुर खान भी यहाँ कम ही रुक पाये।जल्दी ही उत्तरपश्चिम में हुई मुग़ल और बल्ख लड़ाई में वे मारे गये।उनके पुत्रो की संख्या बीस थी।सन् 1857 तक नवाब का टाइटल उनके परिवार के पास था जो बाद में छिन गया।आज भी शहर के अनेक परिवार नवाब बहादुरखान की पीढ़ियों में से है।
क्रमश्
डॉ विकास खुराना-अध्यक्ष,इतिहास विभाग,एस एस (पी.जी) कालेज,शाहजहाँपुर (उ प्र)
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