अनमोल धरोहरों से धनी
शाहजहांपुर अपनी समर्द्ध प्रतिभाओं के बल पर विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति समय समय
पर दर्ज कराता आया है ।ऐसी ही एक शख्सियत रहे हैं प्रसिद्ध ख्यालगो राम किशन शर्मा
उर्फ़ ‘लल्ला महाराज’। ख्यालगो की दुनिया का यह जाना पहचाना फनकार अब हमारे बीच में नहीं है ।पर उनकी कला आज भी उसी बुलन्दियों के साथ जिंदा है ।80 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने तक
उनकी आवाज़ में वही खनक और जोश बरक़रार था ।उनका मौजूद रहना ही कार्यक्रम की जान बन
जाता था ।जनपद रत्न से सम्मानित हो चुके लल्ला महाराज अपने नगर के मोहल्ला आफरीदी
के निवासी थे ।1938 में जन्मे लल्ला महाराज मात्र 8 वर्ष की उम्र से ही संगीत साधना में जुट गए थे ।15 वर्ष की ही उम्र में ही छोटा चौक में आयोजित
एक कार्यक्रम में महान संगीतज्ञ कुमार गंधर्व,कृष्ण कुमार,बीजी जोग तथा पन्ना लाल घोष की उपस्थिति में उन्होंने अपने संगीत से सबको मोह
लिया । इसके बाद देश में उनकी ख्याति बढती ही चली गई ।उनकी ढपली(चंग) उनकी
उपस्थिति का परिचायक बन गई थी ।ग़ज़ल गायकी में भी समां बाँधने का हुनर वह बखूबी
जानते थे ।
'लावनी एक प्रकार का गेय छंद है, जिसे चंग बजाकर गाया जाता है। इसका दूसरा नाम 'ख्याल' भी है। ख्याल अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ ध्यान, स्मरण, मनोवृत्ति, स्मृति आदि है। ख्याल पर विद्वानों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं। अध्यात्म की ओर जाने की दृष्टि से प्रभु की भक्ति में डूबना अर्थात ख़्यालों में डूबना इसे कह सकते है। लावनीगायन पद्धति धीरे-धीरे इतनी मनोरंजक व आकर्षणपूर्ण हो गई , कि संतों और फ़कीरों के पास से यह जन-साधारण तक पहुंची, और लोक-गीत के रूप में प्रकट हुई। तुलसीदास,मीरा,कबीर और अनगिनत दरवेश - फकीरों द्वारा शुरू की गई भारतीय संगीत की इस विधा “ख्याल गायकी” को लल्ला महाराज ने मन से जिया। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में आयोजित लावणी साहित्य के संगीत दंगल में उनकी विशिष्ठ उपस्थिति रहती थी ।लगातार 22 वर्षों तक स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर लाल किले पर आयोजित कवि सम्मलेन में उनको विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता रहा है। तुलसी समिति फिरोजाबाद द्वारा उन्हें बुलबुले शाहजहांपुर की उपाधि से अलंकृत किया गया था । इसके अतिरिक्त उन्हें लावणी महाराज की उपाधि से भी सम्मानित किया गया । उनके परिवार में उनकी पत्नी मुन्नी देवी, और पुत्र राज किशोर शर्मा था सुनील शर्मा हैं।
ख्यालगो लल्लन बाबू की गजल पर एक नज़र डालिए ....
जितना गम दोगे, तनहा ढोलेंगे,
हम न नापेंगे, हम न तोलेंगे।
हल भी अपना जमीन भी अपनी,
जिसका चाहेंगे बीज बो लेंगे।
(प्रस्तुति : आमिर मलिक)
'लावनी एक प्रकार का गेय छंद है, जिसे चंग बजाकर गाया जाता है। इसका दूसरा नाम 'ख्याल' भी है। ख्याल अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ ध्यान, स्मरण, मनोवृत्ति, स्मृति आदि है। ख्याल पर विद्वानों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं। अध्यात्म की ओर जाने की दृष्टि से प्रभु की भक्ति में डूबना अर्थात ख़्यालों में डूबना इसे कह सकते है। लावनीगायन पद्धति धीरे-धीरे इतनी मनोरंजक व आकर्षणपूर्ण हो गई , कि संतों और फ़कीरों के पास से यह जन-साधारण तक पहुंची, और लोक-गीत के रूप में प्रकट हुई। तुलसीदास,मीरा,कबीर और अनगिनत दरवेश - फकीरों द्वारा शुरू की गई भारतीय संगीत की इस विधा “ख्याल गायकी” को लल्ला महाराज ने मन से जिया। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में आयोजित लावणी साहित्य के संगीत दंगल में उनकी विशिष्ठ उपस्थिति रहती थी ।लगातार 22 वर्षों तक स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर लाल किले पर आयोजित कवि सम्मलेन में उनको विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता रहा है। तुलसी समिति फिरोजाबाद द्वारा उन्हें बुलबुले शाहजहांपुर की उपाधि से अलंकृत किया गया था । इसके अतिरिक्त उन्हें लावणी महाराज की उपाधि से भी सम्मानित किया गया । उनके परिवार में उनकी पत्नी मुन्नी देवी, और पुत्र राज किशोर शर्मा था सुनील शर्मा हैं।
ख्यालगो लल्लन बाबू की गजल पर एक नज़र डालिए ....
जितना गम दोगे, तनहा ढोलेंगे,
हम न नापेंगे, हम न तोलेंगे।
हल भी अपना जमीन भी अपनी,
जिसका चाहेंगे बीज बो लेंगे।
(प्रस्तुति : आमिर मलिक)
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