यह स्तंभ 1954 मे बना,गोविदंगज के बुजुर्ग व्यापारियों ने बताया कि यहाँ टालाराम की दुकान थी, क्योंकि कचहरी पुल था नही, इसलिए यह मार्ग निगोही, पुवायां का मेन लिकं था, जाम की समस्या से निपटने के लिए टालाराम की दुकान को मैजिस्टिक सिनेमा के पास स्थांनातरित कर दिया गया।कुछ साल पहले यहाँ कब्जे की कोशिश हुई, तो बाजार की कल्याण समिति ने स्तंभ के चारो ओर पक्का चबूतरा बनवा दिया।हालाकि एक सुझाव यह है कि हो सके तो इसे हरित स्तंभ के रूप मे विकसित किया जाना चाहिए,फूलो के पौधे भी लगाए जा सकते हैहै।एक बात और कि ऐसे स्तभं पूरे उत्तर प्रदेश मे दो या तीन ही है, जिसमे से एक कानपुर मे है।
(कुछ व्यापारियों ने कहा है कि स्तभं का निर्माण उसी वर्ष हुआ, जिस वर्ष नगरपालिका मे शहीदो की प्रतिमा लगी, नगरपालिका की अगली पोस्ट मे शायद स्पष्ट हो सके, पालिका से डाटा मागें गए है।) (विकास खुराना)
(कुछ व्यापारियों ने कहा है कि स्तभं का निर्माण उसी वर्ष हुआ, जिस वर्ष नगरपालिका मे शहीदो की प्रतिमा लगी, नगरपालिका की अगली पोस्ट मे शायद स्पष्ट हो सके, पालिका से डाटा मागें गए है।) (विकास खुराना)
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