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मंगलवार, 26 मई 2015

*मस्जिद-झंडा*

*मस्जिद-झंडा*



(डॉ प्रशांत अग्निहोत्री/डॉ विकास खुराना)
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शहर की प्रमुख मस्जिदों में से एक झंडा मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब के इन्तिकाल(1708) के बाद कोई तीन सौ वर्ष पहले नवाब बहादुर खान के लडके अजीज खान की सरपरस्ती में हुआ।मस्जिद का नाम झंडा इस लिए पडा क्योंकि यहाँ कादिरी सिलसिले के बडे पीर साहब के नाम का झंडा लगाया जाता था।झंडे की उचाई 25-30 फीट तक थी।कुछ लोगो की यह धारणा थी की यहाँ बडे पीर साहब आये थे लेकिन गांधी फैज-ए-आम महाविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ इफजाल-उर-रहमान बताते है कि बडे पीर साहब यहाँ कभी नहीं आये।हाँ!उनकी दसवी पीढी के सैयद अबु इब्राहिम हम्द गिलानी रहमतुल्लाह अलैह यहाँ जरूर आये थे।संभवत तभी झंडा लगाया गया था।वस्तुत झंडा लगाने की परम्परा में तथ्य पीर के निवास का संकेत है।अब मूल झंडा तो नहीं रहा,उसके स्थान पर चबूतरा बना कर एक अन्य झंडा लगाया गया है।लोग इसी चबूतरे का तवाफ करते है और मन्नते मांगते है।यहाँ हर बृहस्पति को मेला लगता है,जिसे ग्यारवी का मेला कहते है।


मस्जिद के बाहर औलिया इकराम की कुछ कब्रे है।मस्जिद के गेट के ठीक सामने बनी दरगाह में पांच कब्रे है।इनमे से एक सैयद फतेह अली मियां और दूसरी सैयद विलायत अली मियां की है,शेष तीन की पहचान नहीं हो सकी है। पूर्व की ओर थोडा आगे सैयद अली मियां का मकबरा है,जिनके नाम का उर्स ग्यारवी शरीफ होता है।
जी.एफ.कालेज के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सैयद नोमान साहब यहाँ के पेश इमाम है,जो अपने इस्लामिक ज्ञान के लिए सर्वत्र जाने जाते है।



Photo Summary-inside and out side look of jhanda mosque,famous tombs of sayed fateh ali gilani,sayed vilayat ali gilani,and sayed ali miya, traditional jhanda.

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