"मैं ईश्वर का
मुखपत्र, नई मानवता का आन्दोलन हूँ;
अन्याय कहीं भी सुलगे, मैं उन लपटों का विज्ञापन हूँ ।"
अन्याय कहीं भी सुलगे, मैं उन लपटों का विज्ञापन हूँ ।"
इन पंक्तियों को
पढने के बाद हमारे जहन में एक इसके रचनाकार के रूप में ऐसा व्यक्तित्व उभरता है , जो अपनी वाणी से
संसार बदलने की क्षमता रखता हो । यकीनन अपनी इस रचना की ही तरह अनैतिकता का मुखर
विरोध करने की साहस स्वर्गीय राजबहादुर “विकल” जी जैसे
व्यक्तित्व के पास ही हो सकता था । 2 जुलाई 1924 को ग्राम रायपुर में जन्मे राजबहादुर “विकल” का प्रारंभिक जीवन आर्थिक और सामाजिक कष्टों के मध्य बीता ।
उनकी रचनाओं में कई जगह पर उनका यह अहसास नज़र आता है । बचपन में ही माँ-बाप का
साया सर से उठ गया । रोज़ी रोटी की तलाश उन्हें शाहजहांपुर नगर तक ले आई ।शहर में
अखबार बांटने से उनकी संघर्ष यात्रा शुरू हुई । लेकिन इन मुश्किलों के भी बीच भी शिक्षा से उनका नाता नहीं टूटा । हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, बांग्ला व अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता विकल जी
ने हिन्दी में स्नातकोत्तर व साहित्यरत्न की उपाधियाँ प्राप्त कीं । तत्पश्चात काकोरी
शहीद इण्टर कालेज जलालाबाद में शिक्षक के रूप में सेवा करने का उन्हें मौका मिला ।जिसको
उन्होंने जीवन पर्यंत निभाया । उन्होंने
जलालाबाद में ही पुरुषोत्तम आदर्श बालिका विद्यालय की स्थापना भी की थी । इस बीच
उनकी लेखनी की धारा अविरल बहती रही । कुछ पंक्तियाँ देखिये ......
रात के घर में नहीं स्वागत सबेरे का हुआ है।
विहग उड़ना रोक मत क्यों मन बसेरे का हुआ है।
सूर्यवंशी धूप के टुकड़े, अनाथों से दुखी हैं-
रोशनी के मंच पर कब्ज़ा अंधेरे का हुआ है।।
रात के घर में नहीं स्वागत सबेरे का हुआ है।
विहग उड़ना रोक मत क्यों मन बसेरे का हुआ है।
सूर्यवंशी धूप के टुकड़े, अनाथों से दुखी हैं-
रोशनी के मंच पर कब्ज़ा अंधेरे का हुआ है।।
कवि सम्मेलनों
में उनको विशिष्ठ स्थान प्रदान किया जाता था । उनकी कविता पाठ की विशिष्ठ शैली
श्रोताओं के लिए उर्जा का माध्यम बन जाती थी । 15 अक्टूबर 2009 को हम सब से विदा लेने तक उनकी वही ओजस्वी वाणी
हम सबको अपनी रचनाओं से मन्त्र मुग्ध करती रही ।उनकी यह पंक्तियाँ उनको अमर कर गई
.......
"धूल के कण रक्त
से धोये गये हैं,
विश्व के संताप संजोये गये हैं;
पाँव के बल मत चलो अपमान होगा,
सर शहीदों के यहाँ बोये गये हैं।"
विश्व के संताप संजोये गये हैं;
पाँव के बल मत चलो अपमान होगा,
सर शहीदों के यहाँ बोये गये हैं।"
'विकल' जी को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री
मुलायम सिंह यादव द्वारा जनपद रत्न तथा पूर्व मुख्यमन्त्री राजनाथ सिंह ने तुलसी
सम्मान से सम्मानित किया था। इसके अतिरिक्त उनके नाम अनगिनत सम्मान दर्ज हैं। देश
के दुश्मनों के साथ समझौतों की आड़ में छुपने वाली सत्ता को चेतावनी देते उनके यह
स्वर वर्षों तक याद रखे जाएंगे ।
"सामर्थ्यहीन कौटिल्य, उतर सिंहासन से नीचे आओ;
"सामर्थ्यहीन कौटिल्य, उतर सिंहासन से नीचे आओ;
शासन सँभालने के
बदले, कुछ करो और घर को जाओ।
ओ सन्धिपत्र के
हस्ताक्षर, सामर्थ्यहीन चिन्तन जाओ;
कायरता के अनुवाद
प्रखर, जलते प्यासे सावन जाओ।
चन्दन को लपटों
ने घेरा, रोको विष के जंजालों को;
गद्दी त्यागो या
जनमेजय बन, कुचलो मारो व्यालों
को!"
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