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शनिवार, 15 अगस्त 2015

संत शिरोमणी श्री त्यागी जी महराज

बहुत कम ही लोग जानते है कि अपना जिला शाहजहाँपुर आध्यात्मिक दृष्टी से भी अत्यंत समृद्ध है।चर्चा पौराणिक काल से ही मिलती है जब श्रृंगी ऋषि को श्राप मिला और उनकी नाक पर सींग उग आया और पश्चाताप करने हेतू जब वे गंगा किनारे चलते चलते अपने जिले की सीमा में आये तो घटिया घाट पर वो सींग घट गया और ढाई घाट पर ढह गया।यद्यपि यह सांकेतिक कथा हो सकती है वास्तव में उनका अहंकार बढ गया होगा और गंगा किनारे चलते चलते तपस्वियो के साक्षात्कार के बाद अह खत्म हुआ होगा।जो भी हो लेकिन इस बात के स्पस्ट प्रमाण है कि कलांन,मिर्जापुर के।इलाके में एक समृद्ध संत परम्परा रही है।देत्य गुरु शुक्राचार्य की तपोस्थल पटना देवकली हो या जमदग्नि,परशुराम का स्थान जलालबाद सबके सब रामगंगा और गंगा जी के किनारे ही बसे है।इन दोनों नदियो के पावन किनारे पर ही आधुनिक समय में आध्यात्मिकता की महान विभूति परमसंत श्री त्यागी जी महराज की साधनास्थली रही है।आपका जन्म जलालाबाद तहसील की ग्राम पंचयत टॉपर में हुआ।आपने सुप्रसिद्ध क्विन्स कालेज,बनारस से एम्.एड तक शिक्षा ग्रहण की।शीघ्र ही आपने मानवता के कल्याण के लिए आध्यात्मिकता का मार्ग चुन लिया।इक्कीस वर्षो तक आपने तपस्या कर ज्ञान और शक्तिओ का अर्जन किया।आपके चमत्कारो की घटनाये सुनाते बहुत से लोग मिल जाते है। कहा तो यह भी जाता है कि आप अपने शरीर पर गरूत्वाकर्षण के प्रभाव को शून्य करने की विद्या जानते थे जिसकी सहायता से आप हवा में उड लेते थे।डॉ आफताब अख्तर ने आपकी आध्यात्मिक शक्तिओ और जीवन पर एक वृतचित्र का निर्माण भी किया है।विभिनन जन आंदोलनों का नेतृत्व कर आपने ढाईघाट और कोल्हाघट के पुलो का निर्माण कराया।वर्ष 2002 में आप ने पार्थिव देह का परित्याग कर दिया।
आपको टॉपर स्वामी,कारव बाबा,त्यागी जी महराज,दूधा बाबा,कालेकंठ वाले बाबा आदि नामो से भी पुकारा जाता है।
'शाहजहाँपुर-सिटीजन ग्रुप की ओर से आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम हैं।'
(Dr.Vikas Khurana/Dr.Prashant Agnihotri)

गुलाम गौस खान

(शाहजहाँपुर के थे रानी लक्ष्मीबाई के कमांडर- इन-चीफ)
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सर ह्यूरोज,जिन्होंने 17जून'1858 को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के साथ निर्णायक लडाई लडी थी ने अपनी किताब में लिखा कि 'विद्रोहियो में एकमात्र मर्द,लक्ष्मी बाई ही थी और हो भी क्यों न जिस समय सारे राजपूताना,सिंध,पंजाब के बडे बडे राजा अंग्रेजो का साथ दे रहे थे एकमात्र रानी ही जन.बख्त खान के साथ रणनीतिक सहयोग कर रही थी।यद्यपि यह विद्रोह कुचला गया लेकिन हिंदुस्तान की तारीख साक्षी है कि न केवल कंपनी का जहाज़ डूब गया बल्कि मुल्क के जर्रे जर्रे से आज़ादी की नयी लहर उठने लगी।
बहुत कम लोग जानते है कि लक्ष्मीबाई के मुख्य कमांडर गुलाम गौस खा अपने शहर के थे।जब झांसी के किले पर अंग्रेजो अधिकार करने पहुँचे तब गुलाम गौस खान के नेतृत्व में रानी के तोपचिओ ने ब्रिटिश खेमे में खलबली मचा दी थी।और गुलाम गौस ही क्यों दोस्त खा,मोती बाई,बख्श खान सभी रानी के उम्दा सिपहसालार थे।यद्यपि झांसी के किले की लड़ाई में गौस खान और मोतीबाई वीरगति को प्राप्त हुए किन्तु उनके प्रयत्नो का ही परिणाम था रानी सकुशल ग्वालियर पहुँच गयी।
बाते तो बहुत है लेकिन फिलहाल इतना ही आजकल जो राष्ट्र् वाद की नयी हवा चली है उसमे उस खून की कीमत कुछ नहीं जो मुसलमानो ने मुल्क के लिए बहा दिया।

आजादी की कहानी

*आजादी की कहानी*
(डॉ विकास खुराना,अध्यक्ष-इतिहास विभाग,एस.एस.कालेज,शाहजहाँपुर)
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1857 के बाद से ही अंग्रेजी सरकार की यह सोच बन गयी थी कि मुसलमान अपनी खोयी सत्ता दुबारा प्राप्त करना चाहते है।फलस्वरूप् मुसलमानो का दमन शुरू हुआ दूसरी ओर हिन्दुओ ने नयी शिक्षा नीति का भरपूर फायदा उठाया और अगले बीस वर्षो में कांग्रेस जैसा अखिल भारतीय संघटन खडा हो गया।ठीक इसी समय सरकार ने मुसलमानो का उपयोग रास्ट्रवादी आंदोलन के खिलाफ करने की सोची ओर लार्ड मिन्टो की गुप्त योजना से लीग अस्तित्व में आई।मुसलमानो को भरात्मक प्रतिनिधित्व दिया गया।1937 में देश में पहले आम चुनाव हुए इस चुनाव में लीग को केवल दो ही सीटे मिल सकी।मुहमद अली जिन्नाह ने नेहरू को पत्र लिखा कि आज साबित हो गया है देश में दो ही ताकते है अंग्रेज और कांग्रेस तो आइये हम मिलकर सरकार बनाये।नेहरू ने भारी भूल करते हुए लीग के कांग्रेस में विलय की शर्त रख दी।जिन्नाह ने इसे अपने खत्म होने का संकेत माना और कांग्रेस पर आरोप लगाने लगा कि यह मुसलमानो की विरोधी संस्था है और इस्लाम खतरे में है।लिहाजा मुसलमान लीग के नीचे आ गए,पृथक पाकिस्तान की आवाज उठी और उसके लिए अमानवीय उपक्रम किये गए।16 सितम्बर को जिनाह ने प्रत्यक्ष कार्यवाही का एलान किया गया।इस दिन कलकत्ता की मुस्लिम सरकार ने हिन्दुओ पर हमले किये कोई 7000 लोग इस दिन मारे गए।शीघ्र ही पूरा देश साम्प्रदयिक दंगो में फस गया। लडाई पद की ही थी नेहरू और जिन्नाह की खामियाजा देश भुगत रहा था।बम्बई में जिन्नाह के डॉक्टर ने नेहरू को पत्र लिखा कि जिन्नाह को केंसर है इसे प्रधानमंत्री बन जाने दो,यह ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहेगा फिर सारा देश आपका ही है।नेहरू नहीं माने।इन परिस्थितिओ में भारत का विभाजन हो गया।इतिहास यह बताता है कि कैसे नेताओ का अहम् लोगो को भीषण स्थितियो में डाल देता है,हम लोग कुछ समझ सके तब तो?
बहरहाल पंजाबी समुदाय जिन्होंने सबसे ज्यादा नुकसान उठाया उनकी ओर से आजादी मुबारक!

मंगलवार, 2 जून 2015

*शहर के मोहल्लों के नामकरण*

शहर की तारीख पर लिखी कुछ किताबो यथा 'अनवर-उल-बहर','तारीख-ए-मति','नाम-ए-मुजफर्रि','शाहजहाँपुर गजेटियर',एन.सी.मेहरोत्रा कृत 'शाहजहाँपुर का इतिहास' से शहर के कमोबेश सभी मोहल्लों के नामकरण की जानकारी मिलती है।इनमे से कई बेहद रोचक है,अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।
1.शहर को अपना वतन बनाने के बाद 52 अफगान काबिले आये उनके नाम पर एमनजई,नसरतजई,जियाखेल,बाडूजई,हुण्डालखेल,अलीजई,बंगश,महमंद इत्यादि।
2.नवाब बहादुर खान के नाम पर बहादुरगंज,उनके बेटे दिलावर खान,हुसैनखान,दिलेर खा,फतेह खा के नाम पर दिलवारगंज,हुसैनपुरा,फतेहगंज (जहाँ बाद में चुंगी भी बनी),इत्यादि।परिवार के अहमदखा,मिश्री खा के नाम पर अहमदपुर,मिश्रीपुर।इत्यादि
3.दिलेर खा की फौज के अफसर शाहबाज खा,लोधी खा के नाम पर शाहबाज नगर,लोधीपुर,दीवान घूरन खान,ख्वाजा फिरोज,रौशनइस्पात खान,गौहर शाह के नाम पर घूरन तालिय्या,रौशनगंज,गौहरपुर।इत्यादि
4.पेशे के नाम पर-बक्सरिया राजपूतो का इलाका बक्सरिया,नवाबो के भांड का इलाका भाटन टोला।इत्यादि
5.व्यवस्था के आधार पर-हाथी बांधने का स्थान हाथीथान।इत्यादि
6.खिरनिबाग में एक लाख से ज्यादा खिन्नी के पेड थे।इन्हें कटवाकर बहादुरगजं की स्थापना।
7.सरायकाइया-जैन धर्म के लोगो की सराय थी।जो बहुत काइया प्रवत्ति के थे।
8.पुत्तू लाल गुप्ता,नगर पालिका के वरिष्ठ सदस्य थे।उनका निधन 1950 में हुआ था,उनके नाम पर पुत्तू लाल चौराहा।
9.रंगीनचौपाल-अफगान कबीलो की शादी बारात अक्सर यही सम्पन होती थी।चौपाल रंग बिरंगे रंगो से सजाई जाती थी।

रविवार, 31 मई 2015

शब्दों और भावों के मनमोहक संयोजन के धनी : डॉ0 मोहम्मद साजिद ख़ान

(आमिर खुर्शीद मलिक)एक हिंदी दैनिक में 15 जुलाई 1990 ई0 को एक लेखक की पहली बाल कविता ‘आमों का मौसम’ प्रकाशित हुई । पहली ही रचना में शब्दों और भावों के मनमोहक संयोजन से यह रचनाकार पारखियों की नज़र में चढ़ गया । धीरे-धीरे देश भर की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 550 कहानी,कविता,एकांकी,चित्र-पहेली, लघुकथा, साक्षात्कार, संस्मरण, समीक्षा, आलेख आदि प्रकाशित हो गए। एक साथ विभिन्न विधाओं में सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाले इस रचनाकार को हम सब डॉ0 मोहम्मद साजिद ख़ान के नाम से जानते हैं । जी0 एफ़0 (पी0जी0) कॉलेज, शाहजहाँपुर के हिन्दी-विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (सीनियर) के पद पर कार्यरत डॉ0 मोहम्मद साजिद ख़ान की रचनाये बाल साहित्य एवं तरुण साहित्य के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बखूबी दर्ज करा रही है । विभिन्न साहित्यिक एवं बाल-साहित्य की संगोष्ठियों एवं सेमिनारों में उनकी सक्रियता देखने को मिलती रहती हैं । वहीँ ‘बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कहानी में मुस्लिम-संस्कृति’ विषय पर शोध-प्रबंध एवं ‘आधुनिक भावबोध और संजीव की कहानियाँ’ पर लघु शोध-प्रंबंध उनकी विशिष्ठ उपलब्धि रही है ।
हंस (नई दिल्ली), वागर्थ (भारतीय भाषा परिषद,कोलकाता), कथादेश (नई दिल्ली), भाषा (केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय उच्चतर शिक्षा-विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली), उत्तर प्रदेश (सू0 एवं जनसंपर्क-विभाग, उ0प्र0), साक्षात्कानर, (साहित्यल अकादमी, मध्य( प्रदेश संस्कृति मंत्रालय, भोपाल) समाज कल्याण (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली), गगनांचल (भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली) अहल्या (दक्षिण भारत, हैदराबाद), प्रज्ञा साहित्य (लखनऊ), विज्ञान प्रगति (नई दिल्ली), नालंदा दर्पण (बिहार), जगमग दीप ज्योति (राजस्थान), अणुव्रत (नई दिल्ली), वंचित टाइम्स (रामपुर), अनुराग बाल पत्रिका (लखनऊ), तितली (बरेली), कत्यूरी मानसरोवर (अल्मोड़ा, उत्तरांचल), बालबगिया (विज्ञान, लखनऊ), पाठक मंच बुलेटिन (नई दिल्ली), साक्षरता संवाद (नई दिल्ली), वेणी (फ़ैज़ाबाद), पारिजात (बाराबंकी), राष्ट्रधर्म (लखनऊ), संस्मृति सुधा (गोरखपुर), फिल्मी दुनिया (नई दिल्ली), बालहंस (राजस्थान), बाल भारती (सू0प्र0 मंत्रालय, नई दिल्ली), सुमन सौरभ (दिल्ली प्रेस, नई दिल्ली), चंपक (उक्त), सरस सलिल (उक्त), नंदन (नई दिल्ली), मधु मुस्कान (नई दिल्ली), टिंकल (मुम्बई), समझ झरोखा (भोपाल), देवपुत्र (इंदौर), लोटपोट (नई दिल्ली), बाल वाटिका (भीलवाड़ा,राजस्थान), बच्चों का देश (जयपुर), चकमक (भोपाल), डोहड़ी (म0 प्र0), बाल दर्शन (कानपुर), जैसी अनगिनत पत्रिकाओं में हम सबने उनको पढ़ा है ।
हिन्दुस्तान (नई दिल्ली, लखनऊ), अमर उजाला (मेरठ, बरेली), नेशनल दुनिया (नई दिल्लीई), स्वतंत्र भारत (लखनऊ), दैनिक जागरण (कानपुर), जनसंदेश (मध्यीप्रदेश), कुबेर टाइम्स (नई दिल्ली), आज (नई दिल्ली), राष्ट्रीय सहारा (नई दिल्ली, लखनऊ), जनमोर्चा (फ़ैज़ाबाद), जनसत्ता (लखनऊ, नई दिल्ली), इतवारी पत्रिका (राजस्थान), राजस्थान पत्रिका (राजस्थान), नेशनल दुनिया (नई दिल्ली ), अक्षर भारत (नई दिल्ली), बच्चे और आप (लखनऊ), इत्यादि समाचारपत्रों ने समय समय पर उनकी रचनाओं को छापा है ।
उनकी बाल साहित्य की प्रकाशित पुस्तकों में ‘छपछैया’ (काव्य-संग्रह), ‘मन का रिश्ता’(पुरस्कृत, कहानी-संग्रह) ,‘अल्लू’ (पुरस्कृत, बाल-उपन्यास), ‘रहमत चचा का घोड़ा’(पुरस्कृत, कहानी-संग्रह) , ‘तुम ख़ूब बड़े बनोगे’ (विज्ञान-कथाएँ) ,‘यादें बचपन की’(आत्मसंस्मरण) ‘सब्ज़ी-सभा (बाल एकांकी-संग्रह) ,चाकलेट’(प्रकाशनार्थ स्वीकृत, कहानी-संग्रह) प्रमुख है । तरुण साहित्य में ‘अपना मुकाम’ , ‘उजाले की राह’ , आवृत्तियाँ , ‘हाय पकवान’ (नाटक) ‘उड़ान’ (कथा) प्रमुख पुस्तकें हैं ।
उन्होंने ‘सहज मानवीय संवेदनाओं का वाहक: रैक्व’, ‘निर्मला पुतुल की कविताएँ : स्त्री-चेतना की संथाली दस्तक’तथा ‘विज्ञापन: संप्रेषण कौशल का प्रमुख तंत्र’विषय पर शोध-पत्र प्रस्तुत किये हैं । उनके निर्देशन में ‘शाहजहाँपुर में मुक्तछंद कविता का विकास और शिल्प’, ‘शाहजहाँपुर का बालसाहित्य-सृजन : एक विवेचन’, ‘डॉ0 शकुंतला कालरा की बाल-कविताएँ: प्रवृत्यात्मक विश्लेषण’, ‘शाहजहाँपुर परिक्षेत्र की बोलियाँ: एक अध्ययन’, ‘आधुनिक भाव-बोध और डॉ0 दिविक रमेश का बालकाव्य’विषय पर शोध हो चुके हैं ।उन्होंने ‘बाल-साहित्य में नव लेखन’ (उ0 प्र0 हिन्दी संस्थान एवं तस्लीम, लखनऊ) राष्ट्रीय संगोष्ठी में सक्रीय प्रतिभाग किया । राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीयता का प्रश्न और राही मासूम रज़ा’ (भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली) में आयोजन समिति के सदस्य के दायित्व को सफलतापूर्वक संभाला । राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘ब्लाग लेखन के द्वारा विज्ञान संचार’(राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, ) में एवं टीम फॉर साइंटिफिक अवेयरनेस ऑन लोकल इश्यू‘ज इन इंडियन मॉसेज ‘तस्ली्म’, लखनउ, में विषय-विशेषज्ञ के रूप में साजिद खान की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। ‘बाल साहित्य की दशा और दिशा विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बाल कहानी का पाठ साजिद ख़ान ने किया । उनकी कहानी ‘नज़रों से दूर’ नई राष्ट्रीय शिक्षा-नीति पर आधारित आधुनिक हिन्दी-शिक्षण की कक्षा-2 की हिन्दी पाठ्य पुस्तक ‘नवलय’ में सम्मिलित की गई है। इसके अतिरिक्त उनकी कविता ‘नई राह पाना है’ राष्ट्रीय तथा राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद एवं माध्यमिक शिक्षा परिषद के नवीनतम पाठ्यक्रम पर आधारित कक्षा-6 की पाठ्य-पुस्तक-‘व्यवहारिक हिंदी व्याकरण तथा रचना’ में सम्मिलित हुई है ।
डॉ0 मोहम्मद साजिद ख़ान के योगदान को अनेकों सम्मानों से समय-समय पर नवाज़ा गया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘मार्मिक बाल कहानियाँ भाग- 1’ के मौलिक लेखन हेतु वर्ष 2000 का राष्ट्रीय भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार , केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा- ‘रहमत चचा का घोड़ा’ (कथा संग्रह) के मौलिक लेखन हेतु वर्ष 2008 का राष्ट्रीय भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार (द्वितीय), ‘बालकन जी बारी इण्टरनेशनल’, नई दिल्ली द्वारा ‘राष्ट्रीय युवा कवि एवार्ड’ प्रदान किया गया । ‘नागरी बाल साहित्य संस्थान’ बलिया द्वारा 17वें बाल-साहित्यकार सम्मान समारोह में बाल-साहित्य की विशिष्ट सेवाओं हेतु सम्मानित,प्रगतिशील साहित्यिक मंच’ बाराबंकी द्वारा सम्मानित , ‘अरविंद पुस्तकालय’ रुदौली द्वारा नागरिक अभिनंदन, ‘बाल प्रहरी’ (उत्तरांचल) द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह-2006’ में उत्कृष्ट बाल-साहित्य सृजन हेतु ‘काव्य श्री’ की उपाधि,‘अल्लू’ (बाल उपन्यास) पर चित्तौड़गढ़ राजस्थान में ‘सोहन लाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार-2006’,‘अपराजिता ओआरजीडॉटकाम’ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय-कहानी-प्रतियोगिता में ‘ईश्वर’ कहानी पुरस्कृत, ‘यादें बचपन की’ (संस्म रण) ‘बाल वाटिका’ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता में संस्मररण विधा के लिए पुरस्कृात, ‘कथादेश’ पत्रिका द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता-2013 में लघुकथा- ‘विमर्श’ पुरस्कृत की गई । हम डा. मोहम्मद साजिद ख़ान के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं ।

नेचर : एक सार्थक पहल

प्राकृतिक आपदाए हमें अहसास कराती है कि मानव और प्रकृति के मध्य सबकुछ ठीक नही चल रहा।वस्तुत मानव ने अपनी स्वार्थ परायणता के चलते जल जंगल जमीन को दूषित कर दिया है।नैसर्गिक सम्पदा पर सभी जीव जन्तुओ का भी उतना ही अधिकार है जितना मानव का।हमें प्रयास करना होगा प्राकृतिक ऋणों से उत्कीर्ण होने का।
'शाहजहाँपुर सिटीजन'की मुहीम 'नेचर' वस्तुतः एक सुखद शुभारम्भ है।कल के भूकंप के बाद अब विचार कर कुछ करने का समय है।आइये इस मुहीम से जुडे और प्रकृति के प्रति अपनी सांत्वना प्रकट करे।
नेपाल त्रासदी में दिवंगत समस्त नागरिको के प्रति श्रधांजलि अर्पित करते हुए।
डॉ शालीन कुमार सिंह
(एस.एस.कालेज)
Photo summary-support in campaign nature..by dr.s.p.dabral,ravi kaithwar,anoop verma,v.n.honda,goldi,furqan,dr.nishant gupta,dr.amit,dr namita singh,portrait by moh.qamar,poet krant.ml verma.

मंगलवार, 26 मई 2015

*मस्जिद-झंडा*

*मस्जिद-झंडा*



(डॉ प्रशांत अग्निहोत्री/डॉ विकास खुराना)
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शहर की प्रमुख मस्जिदों में से एक झंडा मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब के इन्तिकाल(1708) के बाद कोई तीन सौ वर्ष पहले नवाब बहादुर खान के लडके अजीज खान की सरपरस्ती में हुआ।मस्जिद का नाम झंडा इस लिए पडा क्योंकि यहाँ कादिरी सिलसिले के बडे पीर साहब के नाम का झंडा लगाया जाता था।झंडे की उचाई 25-30 फीट तक थी।कुछ लोगो की यह धारणा थी की यहाँ बडे पीर साहब आये थे लेकिन गांधी फैज-ए-आम महाविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ इफजाल-उर-रहमान बताते है कि बडे पीर साहब यहाँ कभी नहीं आये।हाँ!उनकी दसवी पीढी के सैयद अबु इब्राहिम हम्द गिलानी रहमतुल्लाह अलैह यहाँ जरूर आये थे।संभवत तभी झंडा लगाया गया था।वस्तुत झंडा लगाने की परम्परा में तथ्य पीर के निवास का संकेत है।अब मूल झंडा तो नहीं रहा,उसके स्थान पर चबूतरा बना कर एक अन्य झंडा लगाया गया है।लोग इसी चबूतरे का तवाफ करते है और मन्नते मांगते है।यहाँ हर बृहस्पति को मेला लगता है,जिसे ग्यारवी का मेला कहते है।


मस्जिद के बाहर औलिया इकराम की कुछ कब्रे है।मस्जिद के गेट के ठीक सामने बनी दरगाह में पांच कब्रे है।इनमे से एक सैयद फतेह अली मियां और दूसरी सैयद विलायत अली मियां की है,शेष तीन की पहचान नहीं हो सकी है। पूर्व की ओर थोडा आगे सैयद अली मियां का मकबरा है,जिनके नाम का उर्स ग्यारवी शरीफ होता है।
जी.एफ.कालेज के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सैयद नोमान साहब यहाँ के पेश इमाम है,जो अपने इस्लामिक ज्ञान के लिए सर्वत्र जाने जाते है।



Photo Summary-inside and out side look of jhanda mosque,famous tombs of sayed fateh ali gilani,sayed vilayat ali gilani,and sayed ali miya, traditional jhanda.

शुक्रवार, 22 मई 2015

बांसखेडा ताम्रपत्र अभिलेख


(प्रस्तुति – विकास खुराना)
प्राचीन भारत के इतिहास में अपने जिले की व्यापक चर्चा है।चाहे वैदिक कालीन प्रसंग रहे हो या महाभारत काल,अपना जिला हमेशा महत्वपूर्ण रहा।सम्बंधित पोस्ट हर्ष के बांसखेडा ताम्र अभिलेख पर है जो छठी सदी ईस्वी के भारत का एक अति महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जाता है।बांसखेड,कांट के कुरियाकला के दक्षिण में स्थित है।यह अभिलेख 1894 में मिला था और इसकी तिथि 628ईस्वी की है।इस ताम्रपत्र से पता चलता है कि हर्ष ने अहिछत्र भुक्ति(बरेली डिवीजन) के अंतर्गत अंगदिया विषय(शाहजहाँपुर जिला) का मर्कटसागर गांव सब करो से मुक्त कर भारद्वाज गोत्र के दो ब्राह्मणों बालचंद और भटस्वामी को सौंप दिया था।वस्तुतः ब्राह्मणों को जमीन सौपे जाने का प्रचलन तीसरी सदी ईसा पूर्व में सातवाहनों के समय से शुरू होता है लेकिन तब केवल उनका दावा कर और राजस्व पर था।हर्ष काल तक यह दावा पुरे गाव,जमींन,यहाँ तक कि वहां के निवासियो तक विस्तृत हो गया।राजपूत काल में इसमें तेजी आयी और पूरा उत्तर भारत व्यक्तिगत सम्पति के रूप में बाँट लिया गया।इस परम्परा को सामंतवाद के नाम से जाना जाता है इसी के कारण गजनी के महमूद के हमले सफल रहे और मुइज्जुदिन मुहम्मद बिन साम उर्फ शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी यहाँ अपनी हुकूमत कायम कर सका।
इसी अभिलेख से प्रसिद्ध घटना का जिक्र भी मिलता है जब देवगुप्त द्वारा हर्ष की बहन राज्यश्री के पति ग्रहवर्मा की हत्या कर दी गयी। उसके भाई राजवर्धन ने सफलतापूर्वक देवगुप्त को पराजित किया और अपनी बहन को तब बचाया जब वह जंगल में सती होने की तैयारी कर रही थी। किन्तु बंगाल के शशांक द्वारा राजवर्धन की भी धोखे से हत्या कर दी गयी जिसके बाद हर्ष का साम्राज्यवादी अभियान प्रारम्भ हुआ।
Photo.summary-statute of Raja Harsh and translation of copper scripture.


गुरुवार, 21 मई 2015

ओजस्वी वाणी और विशिष्ठ शैली के संवाहक रहे राजबहादुर “विकल”


"मैं ईश्वर का मुखपत्र, नई मानवता का आन्दोलन हूँ;
अन्याय कहीं भी सुलगे, मैं उन लपटों का विज्ञापन हूँ ।"
इन पंक्तियों को पढने के बाद हमारे जहन में एक इसके रचनाकार के रूप में ऐसा व्यक्तित्व उभरता है , जो अपनी वाणी से संसार बदलने की क्षमता रखता हो । यकीनन अपनी इस रचना की ही तरह अनैतिकता का मुखर विरोध करने की साहस स्वर्गीय राजबहादुर विकल जी जैसे व्यक्तित्व के पास ही हो सकता था । 2 जुलाई 1924 को ग्राम रायपुर में जन्मे राजबहादुर विकल का प्रारंभिक जीवन आर्थिक और सामाजिक कष्टों के मध्य बीता । उनकी रचनाओं में कई जगह पर उनका यह अहसास नज़र आता है । बचपन में ही माँ-बाप का साया सर से उठ गया । रोज़ी रोटी की तलाश उन्हें शाहजहांपुर नगर तक ले आई ।शहर में अखबार बांटने से उनकी संघर्ष यात्रा शुरू हुई । लेकिन इन मुश्किलों के भी  बीच भी शिक्षा से उनका नाता नहीं टूटा ।  हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, बांग्ला व अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता विकल जी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर व साहित्यरत्न की उपाधियाँ प्राप्त कीं । तत्पश्चात काकोरी शहीद इण्टर कालेज जलालाबाद में शिक्षक के रूप में सेवा करने का उन्हें मौका मिला ।जिसको उन्होंने जीवन पर्यंत निभाया  । उन्होंने जलालाबाद में ही पुरुषोत्तम आदर्श बालिका विद्यालय की स्थापना भी की थी । इस बीच उनकी लेखनी की धारा अविरल बहती रही । कुछ पंक्तियाँ देखिये ......
रात के घर में नहीं स्वागत सबेरे का हुआ है।

विहग उड़ना रोक मत क्यों मन बसेरे का हुआ है।
सूर्यवंशी धूप के टुकड़े, अनाथों से दुखी हैं-
रोशनी के मंच पर कब्ज़ा अंधेरे का हुआ है।।
कवि सम्मेलनों में उनको विशिष्ठ स्थान प्रदान किया जाता था । उनकी कविता पाठ की विशिष्ठ शैली श्रोताओं के लिए उर्जा का माध्यम बन जाती थी । 15 अक्टूबर 2009  को हम सब से विदा लेने तक उनकी वही ओजस्वी वाणी हम सबको अपनी रचनाओं से मन्त्र मुग्ध करती रही ।उनकी यह पंक्तियाँ उनको अमर कर गई .......
"धूल के कण रक्त से धोये गये हैं,
विश्व के संताप संजोये गये हैं;
पाँव के बल मत चलो अपमान होगा,
सर शहीदों के यहाँ बोये गये हैं।"
'विकल' जी को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव द्वारा जनपद रत्‍‌न तथा पूर्व मुख्यमन्त्री राजनाथ सिंह ने तुलसी सम्मान से सम्मानित किया था। इसके अतिरिक्त उनके नाम अनगिनत सम्मान दर्ज हैं। देश के दुश्मनों के साथ समझौतों की आड़ में छुपने वाली सत्ता को चेतावनी देते उनके यह स्वर वर्षों तक याद रखे जाएंगे ।
"सामर्थ्यहीन कौटिल्य
, उतर सिंहासन से नीचे आओ;
शासन सँभालने के बदले, कुछ करो और घर को जाओ।
ओ सन्धिपत्र के हस्ताक्षर, सामर्थ्यहीन चिन्तन जाओ;
कायरता के अनुवाद प्रखर, जलते प्यासे सावन जाओ।
चन्दन को लपटों ने घेरा, रोको विष के जंजालों को;

गद्दी त्यागो या जनमेजय बन, कुचलो मारो व्यालों को!"  

मंगलवार, 5 मई 2015

कलेक्टरेट भवन

इस नए भवन का निर्माण सन् 1930 में हुआ।यदयपि शाहजहाँपुर 1813 में ही जिला बन चुका था और तभी कचहरी आस्तित्व मे आई।इतिहासकार डा. एन. सी. मेहरोत्रा अपनी पुस्तक 'शाहजहाँपुर का इतिहास 'में म्यूटिनी रिकार्डस का हवाला देते हुए लिखते है कि 1857 के विद्रोह के समय यहाँ(कचहरी)पर एक बाबू स्मिथ की हत्या कर दी गयी थी।भवन का लोकार्पण मिस्टर आर. सी.ओबर्ट (डी. एम.)द्वारा 15मार्च 1931 मे किया गया।भवन की जालियों मे यूनियन जैक के निशान स्पष्टः देखे जा सकते है।15अगस्त 1947 को तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ प्रसाद त्रिपाठी जी की धर्म पत्नी श्री मति भागिरथी देवी द्वारा यहाँ एक स्वतंत्रता का वृक्ष रोपा गया, जो अब बहुत बड़ा हो गया है। (विकास खुराना)

गोविंदगजं का स्तभं....

यह स्तंभ 1954 मे बना,गोविदंगज के बुजुर्ग व्यापारियों ने बताया कि यहाँ टालाराम की दुकान थी, क्योंकि कचहरी पुल था नही, इसलिए यह मार्ग निगोही, पुवायां का मेन लिकं था, जाम की समस्या से निपटने के लिए टालाराम की दुकान को मैजिस्टिक सिनेमा के पास स्थांनातरित कर दिया गया।कुछ साल पहले यहाँ कब्जे की कोशिश हुई, तो बाजार की कल्याण समिति ने स्तंभ के चारो ओर पक्का चबूतरा बनवा दिया।हालाकि एक सुझाव यह है कि हो सके तो इसे हरित स्तंभ के रूप मे विकसित किया जाना चाहिए,फूलो के पौधे भी लगाए जा सकते हैहै।एक बात और कि ऐसे स्तभं पूरे उत्तर प्रदेश मे दो या तीन ही है, जिसमे से एक कानपुर मे है।
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कुछ व्यापारियों ने कहा है कि स्तभं का निर्माण उसी वर्ष हुआ, जिस वर्ष नगरपालिका मे शहीदो की प्रतिमा लगी, नगरपालिका की अगली पोस्ट मे शायद स्पष्ट हो सके, पालिका से डाटा मागें गए है।) (विकास खुराना)

ख्याल गायकी का अविस्मर्णीय कलाकार : राम किशन शर्मा उर्फ़ ‘लल्ला महाराज’

अनमोल धरोहरों से धनी शाहजहांपुर अपनी समर्द्ध प्रतिभाओं के बल पर विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति समय समय पर दर्ज कराता आया है ।ऐसी ही एक शख्सियत रहे हैं प्रसिद्ध ख्यालगो राम किशन शर्मा उर्फ़ लल्ला महाराज। ख्यालगो की दुनिया का यह जाना पहचाना फनकार अब हमारे बीच में नहीं है ।पर उनकी कला आज भी उसी बुलन्दियों के साथ जिंदा है ।80 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने तक उनकी आवाज़ में वही खनक और जोश बरक़रार था ।उनका मौजूद रहना ही कार्यक्रम की जान बन जाता था ।जनपद रत्न से सम्मानित हो चुके लल्ला महाराज अपने नगर के मोहल्ला आफरीदी के निवासी थे ।1938 में जन्मे लल्ला महाराज मात्र 8 वर्ष की उम्र से ही संगीत साधना में जुट गए थे ।15 वर्ष की ही उम्र में ही छोटा चौक में आयोजित एक कार्यक्रम में महान संगीतज्ञ कुमार गंधर्व,कृष्ण कुमार,बीजी जोग तथा पन्ना लाल घोष की उपस्थिति में उन्होंने अपने संगीत से सबको मोह लिया । इसके बाद देश में उनकी ख्याति बढती ही चली गई ।उनकी ढपली(चंग) उनकी उपस्थिति का परिचायक बन गई थी ।ग़ज़ल गायकी में भी समां बाँधने का हुनर वह बखूबी जानते थे ।
'लावनी एक प्रकार का गेय छंद है, जिसे चंग बजाकर गाया जाता है। इसका दूसरा नाम 'ख्याल' भी है। ख्याल अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ ध्यान, स्मरण, मनोवृत्ति, स्मृति आदि है। ख्याल पर विद्वानों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं। अध्यात्म की ओर जाने की दृष्टि से प्रभु की भक्ति में डूबना अर्थात ख़्यालों में डूबना इसे कह सकते है। लावनीगायन पद्धति धीरे-धीरे इतनी मनोरंजक व आकर्षणपूर्ण हो गई , कि संतों और फ़कीरों के पास से यह जन-साधारण तक पहुंची, और लोक-गीत के रूप में प्रकट हुई। तुलसीदास,मीरा,कबीर और अनगिनत दरवेश - फकीरों द्वारा शुरू की गई भारतीय संगीत की इस विधा ख्याल गायकीको लल्ला महाराज ने मन से जिया। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में आयोजित लावणी साहित्य के संगीत दंगल में उनकी विशिष्ठ उपस्थिति रहती थी ।लगातार 22 वर्षों तक स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर लाल किले पर आयोजित कवि सम्मलेन में उनको विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता रहा है। तुलसी समिति फिरोजाबाद द्वारा उन्हें बुलबुले शाहजहांपुर की उपाधि से अलंकृत किया गया था । इसके अतिरिक्त उन्हें लावणी महाराज की उपाधि से भी सम्मानित किया गया । उनके परिवार में उनकी पत्नी मुन्नी देवी, और पुत्र राज किशोर शर्मा था सुनील शर्मा हैं। 
ख्यालगो लल्लन बाबू की गजल पर एक नज़र डालिए ....
जितना गम दोगे, तनहा ढोलेंगे,
हम न नापेंगे, हम न तोलेंगे।
हल भी अपना जमीन भी अपनी,
जिसका चाहेंगे बीज बो लेंगे।
(प्रस्तुति : आमिर मलिक)